Wednesday, April 04, 2012

याद है ....वोह कैसे पूरे दिन आधे शहर में मारे मारे फिरना
याद है ...वोह एक ही फिल्म कई बार देखना

याद है वोह बरसात...
....उस्सी से बचना और उस्सी में भीगना
भीगते भीगते बचना और बचते बचते भीगना

याद है वोह रेल की पटरी के पीछे वाली दरगाह
याद है वोह दरगाह का 'धागे वाला खम्बा'..
.... और वोह लाल ईटों वाला चबूतरा
जहाँ बैठ कर कभी घंटों बारिश देखा करते थे...
.....और याद है वोह सीढ़ियों के पास रेंगती हुई चीटियों की कातर से fascinate होना

याद वोह रेस्तुअरांत जिसका खाना खराब था और आइसक्रीम अच्छी
और हमारा फ्लेवर बदल बदल कर आइसक्रीम का लंच करना
आज भी गुज़रता हूँ उस के सामने से तो अपने से ही नज़र बचा कर...
 एक झलक पलट कर देख लेता हूँ वहाँ....
हमारी वाली टेबल के पास वाली खिड़की के बगल में एक बड़ी सी मोनालिसा की तस्वीर लगा दी है
वोह भी न जाने क्या याद करके मुरझाई सी मुस्कुराती रहती है

याद है एक बार...

याद है?