Thursday, December 20, 2012

घर तलाशते है

जब से घर छूटा है
                 ....बस एक घर तलाशते है
ख़ानाबदोश सफ़र में ...बस एक घर तलाशते है

पहिये लगे है पाँव में
                   ....हवाओं के रुख चले है...
तिशनगी बड़ी है....और ख़ाक छानते है 
ख़ानाबदोश सफ़र में ...बस एक घर तलाशते है

कुछ खुद से रूठे रूठे ..
      कुछ सपने टूटे फूटे .....पलकों में संभालते है
अनजान से  शहर में पहचान ढूंढते है
ख़ानाबदोश सफ़र में ...बस एक घर तलाशते है

उदासिया नहीं है
                  ....खामोशियाँ बहुत है
सुकून ज़रा सा कम है
              ....रौशनी बहुत है
रातों को यूँ ही बेवजह जागते है

ख़ानाबदोश सफ़र में ...बस एक घर तलाशते है

.... ...बस एक घर तलाशते है