कोई तुम से पूछे कौन हूँ मैं
कह देना कोई ख़ास नहीं
वोह जागे यूँ ही रातों में
वोह रूठे छोटी बातें पे
चुप रह सब कुछ कहता है
न तैरता है न बहता है
वोह गाढ़ी नींद का ख़्वाब है
वोह ठहरा हुआ सैलाब है
वोह दरख़्त पे बैठी धूप है
वोह बारिश से उलझता काग है
वोह चुप है पर उदास नहीं
वोह पास भी है और पास नहीं
कह देना कोई ख़ास नहीं
वोह मील के पत्थर गिनता है
वोह तारों की बोली सुनता है
बाज़ारों में तनहा है
और तन्हाई भी उसे रास नहीं
कह देना कोई ख़ास नहीं
कोई तुम से पूछे कौन हूँ मैं
कह देना तुमको याद नहीं
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